आखिर क्यों इंसान को पड़ी कपड़े की जरूरत !

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इंसान कपड़े क्यों पहनते हैं:- दोस्तो कभी आपके जहन में ये सवाल आया है कि आखिर हमलोग कपड़े क्यों पहनते है। या फिर मनुष्य के कपड़े पहनने की शुरूआत कब से हुई। बड़ा अजीब सवाल है न। लेकिन इसका जो उत्तर है वो भी अजीब और रहस्यों से भरा हुआ है। अब आप में से कुछ लोग कहेगें की हमारे समाज में नग्न रहना खराब माना जाता है। इसलिए कपड़े पहनते है। आप में से कुछ लोग ये भी कहेगें की हम शर्दी और गर्मी यानी मौसम से बचने के लिए कपड़ो का इस्तेमाल करते है। लेकिन ऐसा नहीं है। मै आपको बता दू कि आज भी कई ऐसे देश मौजूद है। जहां पर रहने वाले जो व्यक्ति है जो मनुष्य है। वो आज भी कपड़ो का इस्तेमाल नहीं करते, और अब बात कर लीजिए आदिवासियों कि। आज भी कई ऐसे आदिवासी क्षेत्र है, जहां पर रहने वाले आदिवासी किसी भी मौसम में कोई भी कपड़े नहीं पहनते है। फिर क्या ऐसी बजह है जो हमें कपड़े पहनने की जरूरत पड़ी। क्या आप बिना कपड़ों के जीवन जीने की कल्पना कर सकते हैं। आइए जानते हैं कैसे इंसानों को बदन ढकने के लिए कपड़ों की जरूरत महसूस हई। 

कैसे हुई कपड़े पहनने की शुरुआत 

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दरअसल, इंसानों के विज्ञान के जानकार यानी एंथ्रोपोलॉजिस्ट मानते हैं कि इंसान ने क़रीब एक लाख सत्तर हज़ार साल पहले, अपने तन को ढंकना शुरू किया था। इस बात की बुनियाद है जूं। जूं की दो नस्लें ऐसी होती हैं जो इंसान के बदन पर पायी जाती हैं। एक सिर के बालों में। दूसरी बदन के बालों में छुपकर ज़िंदगी बसर करती है। वैज्ञानिक मानते हैं कि एक जूं की ये दो नस्लें तभी पैदा हुई होंगी, जब इंसान ने कपड़े पहनने शुरू किए होंगे। कुछ जुएं उन कपड़ों में भी रहने लगीं। वहीं जो पहले वाली नस्ल थी वो हमारे बालों में ही छुपकर बसर करती रही। शरीर के ये बाल ही गर्मी और ठंड से दूसरे वानरों को बचाते थे। मगर इंसान के बाल नहीं बचे थे। इसी वजह से वो जानवरों की खाल को ओढ़ने लगा, ताकि धूप और ठंड से ख़ुद को बचा सके। आज के इंसानों से पहले की प्रजाति निएंडरथल मानव, जो यूरोप में रहते थे, उन्हें ठंड से बचने के लिए किसी चीज़ की ज़रूरत महसूस हुई होगी। आज के मानव और निएंडरथल मानव के पुरखे एक ही थे। इन्हीं से दो नस्लें पैदा हुईं। इससे साफ़ है कि कपड़ों का आविष्कार, हमसे पहले निएंडरथल मानवों ने किया होगा।

कपड़ों का इस्तेमाल बदन ढंकने के साथ ही सजावट के लिए भी होता था

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कुछ वैज्ञानिको ने इसके लिए कई सबूत इकठ्ठे किये है। जैसे कि जॉर्जिया कि ज़ुज़ुआना गुफा में रंगे हुए रेशे मिले थे। इनसे ऐसा लगता है कि उस दौर में इंसान ने कपड़े सीने की कला सीख ली थी। इससे ये भी पता चलता है कि कपड़े सिर्फ़ बदन ढंकने के लिए नहीं इस्तेमाल होते थे। उनका इस्तेमाल सजावट के लिए भी होता था। आज भी बहुत से आदिवासी जो कपड़े नहीं पहनते, वे अपने बदन को तरह-तरह से रंगते हैं। निएंडरथल मानवों के भी अपने बदन को गेरुए रंग से रंगने के सबूत मिले हैं। इससे साफ़ है कि कपड़ों का इस्तेमाल बदन ढंकने के साथ ही सजावट के लिए भी होता था। जब सिर्फ़ बदन को रंगने से काम नहीं चला, तो इंसान ने बदन को ढंकने के लिए कपड़े पहनने की सोची। फिर उसमें भी रंग डाले गए।

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